ईशान (अहान शेट्टी) मसूरी का छोरा है। उसे एक छोरी से प्यार हो जाता है। नाम है रमिसा (तारा सुतारिया), जो एक लोकल नेता की बेटी है। लंदन से पढ़ी है। पहली नजर में यह फिल्म आपको एक टिपिकल गरीब लड़के और अमीर लड़की की प्रेम कहानी लग सकती है। लेकिन असल में ऐसा है नहीं, क्योंकि कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इसकी कई परतें खुलती जाती हैं।
किसी भी फिल्ममेकर के लिए किसी न्यूकमर को लॉन्च करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसा इसलिए कि उसे सबसे बेहतरीन रूप में प्रजेंट करना चैलेंजिंग होता है। एक ऐक्टर के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह मिले हुए स्क्रीन स्पेस में अपना बेस्ट दे सके। मिलन लुथरिया के डायरेक्शन में बनी ‘तड़प’ में शुरुआती सेकेंड्स पूरी तरह से अहान शेट्टी पर फोकस हैं। उन्हें एक एंग्री यंग मैन वाली छवि देने की कोशिश की गई है, जो अपनी लेडी लव तारा सुतारिया के लिए जुनून से भरा हुआ है। ‘तड़प’ साल 2018 में रिलीज हुई तेलुगू फिल्म ‘आरएक्स 100’ का रीमेक है, जो असल घटनाओं पर आधारित थी।
इंटरवल तक यह फिल्म आपको एक टिपिकल लव स्टोरी लगती है। इसमें एक गरीब लड़का है। एक अमीर लड़की है। वही पुराना मसाला कि लड़की की शादी पिता की मर्जी से हो रही है। लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म अचानक से बदल जाती है। प्यार जुदा हो जाता है। जुनून हद पार करने लगता है। ईशान का किरदार फिल्म में धीरे-धीरे बड़ा होता जाता है। वह गंभीर है, थोड़ा गुस्सैल है और जुनून से भरा हुआ है। अपने डेब्यू फिल्म में अहान के लिए यह एक सही किरदार है। हालांकि, उनके डायलॉग डिलिवरी पर थोड़ी और मेहनत हो सकती है। अहान स्क्रीन पर अच्छे लगते हैं। डेब्यू फिल्म में ही उनमें एक चमक दिखती है।
फिल्म के राइटर रजत अरोड़ा ने कहानी और डायलॉग्स के बूते अहान को एक ऐक्शन-रोमांस हीरो के तौर पर पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मिलन लुथरिया की फिल्में वैसे भी भारी-भरकम डायलॉग्स के लिए जाने जाते हैं। ‘तड़प’ में भी वह इस विधा में निराश नहीं करते हैं। हालांकि, कई बार यह बतौर दर्शक आपके लिए ज्यादा हो जाता है। फिल्म का प्लॉट और इसकी कहानी एक समय के बाद फंसी हुई, थकी हुई लगने लगती है
फिल्म में अहान के पिता का रोल निभाया है सौरभ शुक्ला है। पूरा मसूरी उन्हें ‘डैडी’ बुलाता है। सौरभ शुक्ला ने पर्दे पर अपना काम बखूबी किया है। वह पर्दे पर जो भी कहते और करते हैं, आपको वह अच्छा लगता है। ईशान की लेडी लव रमिसा के किरदार में तारा सुतारिया फिल्म में खूबसूरत लगी हैं। फिल्म में रोमांटिक सीन हो या फिर इमोशनल रोने वाला, तारा आपको सुंदर लगती हैं। हालांकि, स्क्रीनप्ले में उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। लेकिन फिर भी यदि उन्हें थोड़ा स्पेस और मिलता तो वह निखरकर सामने आतीं।
फिल्म अपनी कहानी के लेवल पर मात खाती है। 2 घंटे 10 मिनट के रनटाइम में यह कई मौकों पर आपको थकाती है। उबाऊ लगती है। इंटरवल से पहले जहां फिल्म धीमी रफ्तार में हवा के झोंके की तरह चलती है, वहीं सेकेंड हाफ में ऐसा लगता है जैसे इसने कोई रेस ट्रैक पर दौड़ना शुरू कर दिया हो। फिल्म में कई ट्विस्ट हैं, जो ड्रामा क्रिएट करते हैं। कुछ दमदार ऐक्शन सीन्स हैं। एक दर्शक के तौर पर आधी फिल्म आपको ठीक-ठीक लगती है और आधी बिल्कुल रोमांचक।
प्रीतम के गाने गुनगुनाने लायक हैं। यह लव स्टोरी के लिए अच्छा भी है। मसूरी की खूबसूरती को दिखाने में सिनेमेटोग्राफी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह तथ्य है कि ‘तड़प’ एक कर्मशियल फिल्म है। लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि कुछ ऐसे सीक्वेंस हैं, जो फिल्म में फिट होने में समय लेते हैं। ‘तड़प’ एक ऐसी लव स्टोरी है, जिसका जुनून दर्शकों को भावनात्मक रूप से नहीं जोड़ पाता है।
कुल मिलाकर ‘तड़प’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें रोमांस है, ऐक्शन है, संगीत है और खूबसूरत वादियां हैं। बहुत अच्छा होता यदि स्क्रीनप्ले पर थोड़ी और मेहनत होती, लव स्टोरी में कुछ और ऐसा होता, जो फिल्म देखने के बाद दर्शक एक हसीन याद की तरह घर लेकर लौटते।